अपनी बात...

आज वागड़दूत दैनिक के रूप मे अपने 33वें पडाव पर पहुंच गया है। सन् 1962 को वागड क्षेत्र मे वागड गांधी स्व. भोगीलालजी पण्ड्या, गौरीशंकरजी उपाध्याय जैसे कर्मवीरो ने स्वतंत्रता सैनानी स्व. किशनलालजी गर्ग को प्रेरणा देकर वागडदूत का नामकरण करके साप्ताहिक के रूप मे प्रथम समाचार पत्र का गौरव दिलाया और प्रकाशन प्रारंभ करवाया। सन् 1990  मे जिले की और वागड की स्थिति को देखकर कुछ इष्टमित्रो ने प्रेरणा देकर वागड़दूत को दैनिक के रूप मेंं नया आकार दिया। 

सीमित संसाधनो के चलते वागड़दूत ने वागड क्षेत्र डूंगरपुुुर -बांसवाडा का प्रथम दैनिक बनने का रास्ता अपनाया और निरंतर प्रकाशन जारी है। उठते-गिरते कई झंझावतो के झेलते हुए आज 33वें पडाव पर कदम रखा है। आज पत्रकारिता के क्षेत्र मे कई तरह के बदलाव आए है। सोशल मीडिया, टीवी चैनल ने सामाजिक क्रांति पैदा की है। बावजूद इसके समाचार पत्रो की महत्ता कुछ कम नहीं हुई। आज भी विश्वसनीयता पर पहला नाम समाचार पत्रो का आता है। हालांकि व्यवसायिक युग मे छोटे, मझौले और बडे समाचार पत्रो को भी जुझना पड रहा है। वागड़दूत भी इससे अछुता नहीं है। 

आज हम आपके सामने ही इसका सारा श्रेय पाठको व छोटे-छोटे व्यवसायियो को देना चाहते है जिन्होने समय-समय पर विज्ञापन के माध्यम से योगदान दिया। आज वागड की परिस्थितियां बदल गई है। खासकर राजनीति के क्षेत्र मे नई पीढ़ी के विचारो मे परिवर्तन आया है। वे हमेशा ही अपनी बात को प्राथमिकता से देखना पसंद करते है और हमने भी आज के दौर मे समाहित होने का मन बना लिया है। 

कहने को तो चौथा स्तम्भ कहलाता है लेकिन, सहारे के रूप मे कुछ भी नहीं। न ही राजनीति के क्षेत्र मे न ही सरकारी क्षेत्र मे। विश्व की महामारी कोरोना बीमारी ने सभी को लील लिया। चौथा स्तम्भी भी अछुता नहीं रहा लेकिन, समय के साथ घाव भरने लगे है। जनजीवन सामान्य होने की ओर अग्रसर है। हम भी संभलने का प्रयत्न कर रहे है। अनेक विपदाओं के बावजूद भी हमने अपनी मूल रीति नीति निर्भीक, निष्पक्ष और जनकल्याणकारी नीतियो को नहीं छोडा। समाज को एक सूत्र मे बांध रखे का काम जारी है। आज के दिन हम पुन: संकल्प दोहराते है कि हमारी अपनी रीति के अनुसार समाज के लिए कार्य करते रहेंगे और उन सभी के प्रति आभार प्रकट करते है जिन्होने हमे संबल दिया। 

एक बार पुन: सभी के सहयोग की आशा के साथ...

सधन्‍यवाद


                                                - महेशचन्द्र गर्ग

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